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US का कर्ज बाजार का नया मर्ज बनकर उभरा है। कल अमेरिका में जो बॉन्ड ऑक्शन हुआ उसकी डिमांड बेहद खराब थी। इस ऑक्शन के बाद दुनिया के बाजारों में अमेरिकी इकोनॉमी को लेकर घबराहट बढ़ गई है। कितना बड़ा है US का कर्ज संकट इस पर बात करने के लिए हैं एलारा कैपिटल के चेयरमैन और CEO राज भट्ट। लेकिन पहले जान लेते हैं कि कितना बड़ा है अमेरिका का कर्ज। US का कर्ज 36 लाख करोड़ डॉलर के पार चला गया है। US का कर्ज देश के जीडीपी का 122 फीसदी हो गया है। US के कर्ज में हर तिमाही में 1 लाख करोड़ डॉलर की बढ़त हो रही है। हाल ही में मूडीज ने अमेरिका की डि-ग्रेडिंग की है साथ ही नया टैक्स बिल भी आने वाला है इसके कारण अमेरिका के कर्ज में 5 लाख करोड़ डॉलर की और बढ़त हो सकती है।
अमेरिकी कर्ज में 27 लाख करोड़ डॉलर की होल्डिंग अमेरिकी नगरिकों के पास ही है। वहीं, दूसरे देशों का कर्ज 9 लाख करोड़ रुपए का है। US में किस पर कितना कर्ज इसकी बात करें तो निवेशकों का 15.6 लाख करोड़ डॉलर है। वहीं, US एंजेसी और ट्रस्ट से लिय गया कर्ज 7.36 लाख करोड़ डॉलर है। वहीं, फेडरल रिजर्व का कर्ज 4.63 लाख करोड़ डॉलर है।
किन देशों के पास कितने अमेरिकी बॉन्ड हैं, इसकी बात करें तो जापान के पास 1.13 लाख करोड़ डॉलर के अमेरिकी बॉन्ड हैं। वहीं, यूके के पास 0.78 लाख करोड़ डॉलर के अमेरिकी बॉन्ड हैं। जबकि चीन के पास 0.76 लाख करोड़ डॉलर के बॉन्ड हैं।
US का कर्ज, कितना बड़ा मर्ज
US का कर्ज बढ़ने से US बॉन्ड डिमांड घटेगी और बॉन्ड यील्ड बढ़ेगी। डॉलर कमजोर होगा। इससे मंदी गराएगी और नौकरियां घटेंगी। इससे ग्लोबल ग्रोथ में धीमापन आएगा। US का कर्ज बढ़ना ग्लोबल कारोबार पर निर्भर कंपनियों के लिए निगेटिव है।
एलारा कैपिटल के चेयरमैन और CEO राज भट्ट का कहना है कि अमेरिका में बढ़ते कर्ज की परेशानी बहुत पहले से थी। लेकिन यह माना जा रहा था इससे निपटा जा सकता है। बाजार ने जोश में कई बातों को नजरअंदाज कर दिया। टैरिफ के चलते पहले तो बाजार में तेज गिरावट आई लेकिन फिर बिना किसी ठोस सकारात्मक वजह के इसमें तेज उछाल आया। यह बात बहुत समझ में नहीं आई क्योंकि टैरिफ की समस्या कुछ दिनों के लिए टल भले गई हो लेकिन इसका कोई समाधान नहीं हुआ है। बॉन्ड ऑक्शन की मांग कमजोर रहने के चलते बॉन्ड यील्ड बढ़ी है।
ये अपने में एक बड़ी चेतावनी का संकेत है। इस साल अमेरिका को 7 लाख करोड़ डॉलर के कर्ज की नीलामी करनी है। इसमें 2 लाख करोंड़ डॉलर का डेफिसिट है और 2 लाख करोंड़ डॉलर रिफाइनेंशिंग के हैं। अब सवाल ये है कि डेट को कौन खरीदेगा। चीन पहले से ही अमेरिकी बॉन्डों के बेच रहा है और उससे मिला पैसा गोल्ड में लगा रहा है। अगर अमेरिका इस समस्य का समाधान नहीं कर पाता तो स्थितियां बहुत बिगड़ जाएंगी। इससे तमाम दूसरी परेशानियां भी पैदा हो सकती हैं।
राज भट्ट ने आगे कहा कि पिछली दो तिमाहियों में अमेरिका से निकल कर निवेशक यूरोप की तरफ गए हैं। यूरोप अभी भी अमेरिका से सस्ता है। अमेरिका पर ब्याज का बोझ और बढ़त सकता है। अगर अमेरिका में संकट आता है तो वहां से पैसे निकलकर दूसरे बाजारों में जाएंगे। इसका फायदा भारत को भी मिल सकता है।
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