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भोपाल की रॉयल फार्म विला कॉलोनी के फ्लैट नंबर 307 के गलियारों में अब सन्नाटा गूंज रहा है। भटनागर परिवार को कभी रोशन करने वाली रोशनी अब मंद पड़ गई है, उसकी जगह एक अकेला टिमटिमाता हुआ दीया आ गया है, जो अपनी लौ को थामे रखने के लिए संघर्ष कर रहा है। सोमवार की रात जो कुछ हुआ, वह महज एक त्रासदी नहीं है, यह इस बात की याद दिलाता है कि जब व्यवस्थाएं विफल हो जाती हैं और भावनाएं हावी हो जाती हैं, तो जीवन कितना नाजुक हो जाता है।
NDTV के मुताबिक, रात के करीब 10 बजे होशंगाबाद रोड पर तेज हवाएं चलीं, जिससे कॉलोनी अंधेरे में डूब गई। अपने घर के अंदर, 51 साल के ऋषिराज भटनागर ने अपने छोटे बेटे, 8 साल के देवांश को लिफ्ट से वापस अपने फ्लैट पर चलने के लिए कहा। लेकिन देवांश के अंदर जाने के कुछ ही देर बाद बिजली चली गई। लिफ्ट रुक गई। लड़का फंस गया।
बच्चा चिल्लाया- “पापा…पापा…”, उसकी आवाज रुकी हुई लिफ्ट की दरारों से होकर गुजर रही थी।
इसके बाद एक पिता की हताश दौड़ शुरू हुई – दिल की धड़कनें तेज हो रही थीं, पैर कांप रहे थे – सीढ़ियों से ऊपर-नीचे, तो कभी जेनरेटर रूम की ओर… उन्होंने सिस्टम को फिर से चालू करने की कोशिश की। तीन मिनट के भीतर बिजली बहाल हो गई। लिफ्ट चालू हो गई। देवांश सुरक्षित बाहर निकल आया।
लेकिन तब तक देवांश के पिता बेहोश हो चुके थे।
CPR से भी कोई मदद नहीं मिली। अस्पताल के डॉक्टरों ने ऋषिराज को मृत घोषित कर दिया। उनकी मौत दुर्घटना से नहीं, बल्कि एक पिता की घबराहट के असहनीय बोझ से हुई।
उसी दिन सुबह उनकी पत्नी पारुल ने वट सावित्री व्रत रखते हुए अपने पति की लंबी उम्र के लिए पवित्र बरगद के पेड़ के नीचे प्रार्थना की थी। लेकिन रात होते-होते वह आदमी चला गया, जिसके लिए उन्होंने व्रत और पूजा पाठ किया था। और सिर्फ़ तीन महीने में दूसरी बार, दिल के दौरे ने परिवार के एक स्तंभ को छीन लिया। ऋषिराज के अपने पिता भी शाम की चाय पीते हुए ऐसे ही चल बसे थे।
ऋषिराज एक पारिवारिक व्यक्ति से कहीं बढ़कर थे। एक प्रॉपर्टी डीलर और बीमा सलाहकार के रूप में, वे कॉलोनी के रख-रखाव और रोजमर्रा के कामकाज के पीछे की खामोश ताकत थे। बिना किसी शिकायत के जिम्मेदारी लेने के लिए जाने जाने वाले, वे ऐसे व्यक्ति थे, जिन पर लोग भरोसा करते थे।
पड़ोसी और प्रत्यक्षदर्शी विवेक सिंह ने कहा, “वह इधर-उधर भागता रहा, जेनरेटर चालू करने की कोशिश करता रहा… मेरी बहन ने उसे CPR दिया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।”
सोसायटी के एक और सदस्य बृज सक्सेना ने कहा, “जेनरेटर बैकअप में देरी हुई। घबराहट बहुत ज्यादा थी। हालांकि हम उसे अस्पताल ले गए, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका।”
तकनीकी खराबी और जेनरेटर की देरी अब पुलिस जांच के केंद्र में है। मिसरोद पुलिस थाने के प्रभारी मनीष राज भदौरिया ने कहा, “शुरुआती जांच से पता चला है कि लड़का लिफ्ट में फंस गया था और पिता उसे बचाने की कोशिश कर रहा था। इस कोशिश के दौरान वह गिर गया। हर पहलू की जांच की जा रही है।”
लेकिन कॉलोनी में अब बहुत कम लोग बोलना चाहते हैं। गलती स्वीकार करने में झिझक होती है, एक घबराहट भरी जिद होती है कि “घबराने की कोई जरूरत नहीं है।”
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