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Bengaluru: समुद्र तल से 3,000 फीट ऊपर भारत का टेक हब बेंगलुरु, हर बारिश में क्यों हो जाता है पानी-पानी – bengaluru india s tech hub is 3000 feet above sea level why does bengaluru get flooded every time it rains

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बेंगलुरु का एम चिन्नास्वामी स्टेडियम बारिश के दौरान ऐसे स्पॉट है, जहां भारी बारिश और जल जमाव से निपटने का बड़ा ही हाईटेक सिस्टम है। ये स्टेडियम सबएयर सिस्टम से लैस है, जो एक 200-हॉर्सपावर मोटर से चलने वाला एक सबसरफेस एरिएशन और वैक्यूम ड्रेनेज सिस्टम है। यह प्रति मिनट 10,000 लीटर पानी निकाल सकता है, जिससे भारी बारिश के बाद भी 15-20 मिनट के भीतर पिच मैच खेलने लायक हो जाती है। लेकिन समुद्र तल से लगभग 3,000 फीट ऊपर बसा और अपनी सुखद जलवायु के लिए प्रसिद्ध बेंगलुरु शहर, जब भी बारिश होती है, बार-बार बाढ़ की समस्या से जूझता है।

हैरानी के बात ये है कि नीदरलैंड, जहां की लगभग 26 प्रतिशत जमीन समुद्र तल से नीचे है और वहां के एडवांस कोस्टल डिफेंस और मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर के चलते बाढ़ दुर्लभ है, लेकिन बेंगलुरु जो इतना ऊंचाई पर बसा है, वहां लगातार बाढ़ आती है।

एक्सपर्ट इसका श्रेय 1990 के दशक में IT बूम से शुरू हुए दशकों के अनियोजित विकास को देते हैं। झीलों को भरकर उन्हें टेक पार्क, बस स्टेशन, स्टेडियम, सड़कें और रेजिडेंशियल लेआउट में बदल दिया गया। अब, प्रकृति बाढ़ के जरिए इन जगहों को फिर से वापस ले रही है।

जबकि बेंगलुरु स्टार्टअप्स और वेंचर पूंजीपतियों के साथ एक ग्लोबल डिजिटल हब के रूप में उभर रहा है, फिर भी इसके फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को नजरअंदाज किया गया, भले ही किसी भी राजनीतिक दल – कांग्रेस, बीजेपी, या JD(S) ने शहर पर शासन किया हो।

हर साल बरसात में बेंगलुरु होता है पानी-पानी

जब भी काले बादल छाते हैं, बेंगलुरु के निवासियों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जैसे ट्रैफिक जाम, जलभराव, गिरे हुए पेड़, डूबी हुई गाड़ियां, बिजली की कटौती और यहां तक कि इमारतों का ढह जाना

निचले इलाकों में रेस्क्यू करने वाली नाव का घूमना एक आम तस्वीर है। हर साल मानसून से पहले नगर निकाय आश्वासन देता है कि शहर तैयार है, लेकिन कुछ ही बारिश में दरारें दिखने लगती हैं।

राजनेता और अधिकारी घुटने भर पानी में चक्कर लगाते हैं, वादे करते हैं और एक दूसरे पर दोषा मढ़ते हैं, और फिर अगले साल यही तस्वीरें और हालात बन जाते हैं।

बेंगलुरु तीन मेन नेचुरल वैली सिस्टम में बंटा है: हेब्बल (उत्तरी बेंगलुरु), कोरमंगला-चल्लाघट्टा (मध्य और दक्षिण-पूर्वी भाग), और वृषभावती (दक्षिण-पश्चिमी बेंगलुरु)। इन घाटियों पर कंस्ट्रक्शन और अतिक्रमण ने प्राकृतिक जल निकासी (Natural Drainage) को नष्ट कर दिया है।

860 किलोमीटर लंबे तूफानी जल निकासी (Stormwater Drainage) नेटवर्क में से 60 प्रतिशत से भी कम में रिटेनिंग वॉल हैं और पहचाने गए अतिक्रमणों में से केवल आधे को ही हटाया गया है। खराब तरीके से गाद निकालने, RCC वाली सड़कें और स्लुइस गेट और अंडरग्राउंड रिटेंशन टैंक जैसे रुके हुए प्रस्ताव बाढ़ की स्थिति को और खराब कर रहे हैं।

BBMP के चीफ कमिश्नर एम महेश्वर राव ने कहा: “2024-25 के लिए, कर्नाटक सरकार ने ‘Karnataka Water Security and Disaster Resilience Initiative’ के तहत BBMP को 2,000 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। हम RCC वॉल के साथ 173.9 किलोमीटर के स्टॉर्म वाटर ड्रेन को अपग्रेड करेंगे, कर्नाटक राज्य प्राकृतिक आपदा निगरानी केंद्र (KSNDMC) के जरिए वैज्ञानिक तरीकों को अपनाएंगे, अतिक्रमण हटाएंगे और बाढ़ शमन के लिए फीडर ड्रेन के जरिए झीलों को जोड़ेंगे।”

रिटायर्ड IAS अधिकारी एमजी देवसहायम कहते हैं, “बेंगलुरु समुद्र तल से 3,000 फीट ऊपर है – यहां इस तरह बाढ़ नहीं आनी चाहिए। समस्या भूगोल नहीं बल्कि खराब सिटी डिजाइन और प्रशासन है। शहर का निर्माण लोगों से नहीं, बल्कि पैसे से होता है। टनल प्रोजेक्ट को देखिए – भारी निवेश लेकिन जनता को बहुत कम लाभ।”

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