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IPO को लेकर सेलेक्टिव हो गए है रिटेल निवेशक, GMP की बजाय वैल्यूएशन और फंडामेंटल पर कर रहे फोकस – retail investors turn selective amid strong ipo pipeline focus on valuations fundamentals

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IPO Market: शेयर मार्केट में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल रहा है। मार्केट में रिटेल निवेशक अब आईपीओ को लेकर सेलेक्टिव हो रहे हैं। साल 2022 के बाद यह पहली बार है कि किसी एक वर्ष में IPO में औसत रिटेल भागीदारी में गिरावट दर्ज की गई है। बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि रिटेल निवेशक अब केवल ग्रे मार्केट प्रीमियम(GMP) से प्रभावित नहीं हो रहे हैं, बल्कि वैल्यूएशन, कंपनी के फंडामेंटल और प्रमोटर्स की क्वालिटी जैसे पहलुओं पर अधिक ध्यान दे रहे हैं।

दरअसल हाल ही में Schloss Bangalore (लीला होटल) और Aegis Vopak Terminals के आईपीओ में रिटेल सेगमेंट में क्रमशः 83 प्रतिशत और 77 प्रतिशत की अंडरसब्सक्रिप्शन देखी गई। दिलचस्प बात यह है कि बेलराइज इंडस्ट्रीज के आईपीओ में, जो इन दोनों आईपीओ के खुलने से कुछ दिन पहले बंद हुआ था, खुदरा सेगमेंट लगभग 4.3 गुना सब्सक्राइब हुआ था।

IPO के लिए रिटेल आवेदनों में गिरावट

प्राइम डेटाबेस के आंकड़ों से पता चलता है कि जनवरी 2025 के बाद खुदरा आवेदनों की संख्या में कमी आई है। जनवरी में लॉन्च हुए आईपीओ के लिए औसतन 32 लाख से अधिक रिटेल आवेदन आए थे, लेकिन उसके बाद के आईपीओ में यह संख्या घटकर दो लाख से भी कम हो गई। आईपीओ को लेकर उत्साह रिटेल निवेशकों में कम होता दिख रहा है जिसकी पुष्टि हाल के कुछ आईपीओ के आवेदन देखने से होती है। रिटेल सब्स्क्रिप्शन में कमी निवेशक की भावना में बदलाव को दिखाता है।

2022 आईपीओ के लिए एक सुस्त वर्ष था। साल 2021 में जहां कंपनियों ने अपने आईपीओ से ₹1.18 लाख करोड़ फंड जुटाए थे वहीं 2022 में आंकड़ा लगभग आधा हो गया था। हालांकि, 2024 में ₹1.60 लाख करोड़ आईपीओ के माध्यम से जुटाए गए।

चयन का आधार: वैल्यूएशन और फंडामेंटल

कुछ मनी मैनेजरों का कहना है कि अब निवेशकों के आईपीओ में निवेश करने के निर्णय में वैल्यूएशन, कंपनी के फंडामेंटल और प्रमोटर्स की क्वालिटी जैसे पहलुओं पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। प्राइम डेटाबेस के अनुसार, 2025 में (24 मई तक) आईपीओ में रिटेल आवेदनों की औसत संख्या लगभग 16.7 लाख रही, जो पिछले साल के 18.9 लाख से कम है। पिछली बार यह आंकड़ा 2022 में गिरा था, जब आईपीओ में रिटेल आवेदनों की औसत संख्या 2021 के 14.45 लाख से घटकर 5.66 लाख हो गई थी।

GMP से परे सोच रहे निवेशक

कीनोट कैपिटल के प्रबंध निदेशक राकेश चौधरी ने कहा, ‘पहले रिटेल निवेशक ग्रे मार्केट प्रीमियम के आधार पर आईपीओ पर फैसला करते थे, लेकिन अब रिटेल निवेशक काफी चयनात्मक हो गए हैं। अब नए युग के निवेशक निवेश करने का फैसला करने से पहले होमवर्क करते हैं।’ कोई भी अब फैंसी वैल्यूएशन पसंद नहीं करता है। आईपीओ जारीकर्ताओं को यह ध्यान रखना चाहिए कि निवेशक वैल्यूएशन के बारे में काफी जागरूक हैं।

IPO की भरमार से हो रही मांग में कमी

बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि IPO की बंचिंग भी मांग में कमी का एक कारक हो सकता है। यह मर्चेंट बैंकरों, प्रमोटरों के साथ-साथ निवेशकों के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि आने वाले महीनों में बड़ी संख्या में आईपीओ लॉन्च के लिए तैयार होने की संभावना है। प्राइम डेटाबेस के अनुसार, लगभग 140 कंपनियां ₹2 लाख करोड़ से अधिक के नए आईपीओ के साथ कतार में हैं। IIFL कैपिटल के संयुक्त सीईओ राघव गुप्ता ने कहा, ‘जब कई आईपीओ तेजी से बाजार में आते हैं, तो यह आदर्श रूप से मांग में कमी ला सकता है।

म्यूचुअल फंड कर सकते है रिटेल निवेशको की भरपाई

राघव गुप्ता ने आगे कहा कि, म्यूचुअल फंड बहु-वर्षीय उच्च स्तर की नकदी स्थिति पर बैठे हैं। उनमें आईपीओ के प्रवाह को अब्जॉर्ब करने की क्षमता निश्चित रूप से है।’ गुप्ता ने कहा, ‘मेरा दृढ़ विश्वास है कि अलग-अलग बिजनेस मॉडल, मजबूत मौलिक सिद्धांतों और उचित मूल्यांकन वाले जारीकर्ता अभी भी स्वस्थ रुचि प्राप्त करने की संभावना रखते हैं। ओवरवैल्यूएशन, खासकर स्टार्टअप और घाटे में चल रही कंपनियों के लिए, बढ़ती चिंता का विषय है। हालांकि, एक मजबूत मैक्रो पृष्ठभूमि, लचीला खुदरा प्रवाह, और क्षेत्रीय विविधीकरण कुछ जोखिमों को कम कर सकता है।’

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